पुरुष हू मैं सख्त कठोर
पर अंदर से नम्र भी हू मैं
पुरुष हू मैं।
माँ का दुलारा
पिता का सहारा
पत्नी की शान
बच्चों का अभिमान
लिए कंधो पर फर्ज का बोझ
लड़ता हू दुनियां से हर रोज
सहता हू हर दर्द चुपचाप
दिल रोये भी अगर
नही आती आवाज
माँ भी आजकल
खुश नजर नही आती
बीबी की शिकायत भी भारी
कहती है हर रोज
रसोई बच्चे कितना
है मुझ पर बोझ
समझ नही आयी
आज तक एक बात
क्या सिर्फ मैं ही
बना बाप?
माँ के बच्चे बोझ
कब होने लगे
रिश्ते क्या इतना मोल
खोने लगे
दिल मेरा भी रोता है
हां पुरुष हू मैं
पर दर्द मुझे भी
होता है ।
पर अंदर से नम्र भी हू मैं
पुरुष हू मैं।
माँ का दुलारा
पिता का सहारा
पत्नी की शान
बच्चों का अभिमान
लिए कंधो पर फर्ज का बोझ
लड़ता हू दुनियां से हर रोज
सहता हू हर दर्द चुपचाप
दिल रोये भी अगर
नही आती आवाज
माँ भी आजकल
खुश नजर नही आती
बीबी की शिकायत भी भारी
कहती है हर रोज
रसोई बच्चे कितना
है मुझ पर बोझ
समझ नही आयी
आज तक एक बात
क्या सिर्फ मैं ही
बना बाप?
माँ के बच्चे बोझ
कब होने लगे
रिश्ते क्या इतना मोल
खोने लगे
दिल मेरा भी रोता है
हां पुरुष हू मैं
पर दर्द मुझे भी
होता है ।
No comments:
Post a Comment