Saturday, June 22, 2019

पुरुष

पुरुष हू मैं सख्त  कठोर
पर  अंदर  से नम्र भी हू मैं
पुरुष हू मैं।
माँ का दुलारा
पिता का सहारा
पत्नी की शान
बच्चों का अभिमान
लिए  कंधो  पर फर्ज  का बोझ
लड़ता हू दुनियां से हर रोज
सहता हू हर दर्द चुपचाप
दिल रोये भी अगर
नही आती  आवाज
माँ  भी आजकल
खुश नजर नही आती
बीबी की शिकायत भी भारी
कहती है हर रोज
रसोई बच्चे कितना
है मुझ पर बोझ
समझ नही आयी 
आज तक एक बात
क्या सिर्फ मैं ही
बना बाप?
माँ  के बच्चे  बोझ
कब होने लगे
रिश्ते क्या इतना मोल
खोने  लगे
दिल मेरा भी  रोता है
हां पुरुष हू मैं
पर  दर्द मुझे भी
होता है ।



Wednesday, June 5, 2019

पुकार






Wednesday, June 5, 2019


पुकार

जिसने  माँ जैसा दुलार दिया
हरी भरी छाया से
जीवन संवार दिया
उस माँ के आँचल को
छलनी कर जाते है
बिन सोचे पेड़ काटे जाते है
बेमोल जिदंगी दिए जाती है
उस  हवा में भी जहर घुल जाती है
गर ना होती  नदिया
फिर प्यास  कौन बुझाता?
नादान इंसान फिर भी
समझ न पाता
मैला करेंगे जो इनको
जीवन का आधार
बनायेंगे किसको
है जो  खुद से प्यार
बंद करो प्रदूषण की रफ्तार
चलो वृक्ष  लगाए दो चार
वृक्ष  है धरा का श्रृंगार ।


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ईद

   छोड़कर  बैर सभी
सबको गले लगाए
सिवइयों की मिठास
रिश्तों में लाए
अमन प्रेम सब
रहे कायम
ऐसे मिलकर
ईद मनाएं।

Sunday, June 2, 2019

आफरीन

हंसी  से उसकी
मोती बिखर  जाये
लबों की पखुंडियो से
गुलाब भी शरमा जाये
निगाहों में कशिश ऐसी
जो होश भुलाए
अदाओं के जादू  से
इंसान क्या
फरिश्ते भी ना  बच पाये
कैसे करूँ तेरे हुस्न की तारीफ
कि अल्फाज ही कम पड़ जाये ।


सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...