कहते हैं नफरत के एक पल में, प्यार के कई साल भूल जाते हैं।
बनकर अश्क प्यार के हर वो पल आंखो से आज भी निकल जाते हैं।।
भरी धूप हो या बारिश का मौसम,
मिलने का इंतजार हरदम
उसका एक बार बुलाना,
सब छोड़ कर मेरा चले जाना।
रास्ते की मीनार, वो चौराहे का मकान, दाएं मुड़ कर बस रुक जाना।।
याद है अब भी खुद को ना रोक पाना,
तेज सांसों के साथ जीने पर चढ़ते जाना।
खुलते दरवाजे के साथ उस से लिपट जाना।।
छेड़ कर मुझे फिर उसका प्यार दिखाना,
उसकी बस इसी अदा पर मेरा दिल हार जाना।
खोकर उसमें खुद को पा जाना।
याद है सब ऐसे जख्म ताजा हों जैसे।
कैसी है ये नफरत जिसमें
दूर होकर भी है इंतजार।
याद है उसकी बेवफाई भी मगर,
दिल को तड़पाता है सिर्फ उसका प्यार।।