Saturday, May 23, 2020

पुनर्निर्माण

चहुं ओर  पसरा सन्नाटा , अजब सी है शांति
हैरान है इंसान प्रसन्न है प्रकृति
वर्षो से धरती की तड़प अब ले रही  करवट
काटकर जंगल जिनसे छीना ठिकाना
सूनी राहों पर अब उनका है आशियाना
भुगत रहा इंसान लालच का खामियाजा
बंद हो गए हत्या,लूट सब अपराध है
बंद हुआ इंसान घरों में प्रकृति कर रही पुनर्निर्माण है
है समय कठिन पर डरो ना ये करो ना काल है
विनाश के साथ ही  नव सृजन का काल है
बन जाओ इंसान फिर ये सबक महान है
छोड़ो लालच, अभिमान मोह माया
यही सिखाने करोना धरती पर आया
माना  आपदा बहुत  विकराल है
आपदाओं में संभले, संवरे वहीं इंसान है।





सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...