Monday, June 29, 2020

बरसात

हो रही है बरसात अंदर भी बाहर भी
भिंगा रही है बौछार तन भी मन भी
मद्धम है सांसे है आंख भी नम
पढ़ ना  सकी चेहरे ये कमी नहीं है कम
उठती थी उमंगे खिलता था मन
लेकर सवाल बहुत आया इस बार बारिश का मौसम
बूंदे जो लाती थी तन मन में सिहरन
बहती है आज आंखों से नमी बन
बूंदों की फुहार से खिल उठा था बचपन
अनछुए बूंदों की ताजगी चुरा गया यौवन
आता है मन में सवाल रह रह कर
क्या पाया बचपन खोकर?
बस एक था ख्वाब जो रह गया सपना बनकर
दिखा गई  हकीकत जिंदगी आईना बनकर।
 


सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...