Saturday, March 23, 2024

कहीं दूर चल

 चल मन कही दूर चल

जहां दिखे पूरा चांद

जहां मिले खुला आसमान

हो हवा निर्मल

कल कल बहता हो 

नदिया का जल।


न हो काला जहरीला धुंआ जहां

बस मुझे वही ले चल।

जहां हो चिड़ियों की चहचहाट

जहां मिले जीवन की आहट

न हो भागम भाग जहां

मिले खुद को खुद का साथ जहां

बस वही ले चल।


चल मन कही दूर चल

जहां चंदा लोरी सुनाएं

सूरज की किरणे सुबह जगाए

जहां हो प्रकृति का संगीत

धूप  हरियाली बन जाए मनमीत

ले चल मुझे बस वही ले चल।।

Monday, March 4, 2024

क्यों

 निभाना नही था जब वादा कोई

झूठी कसमें क्यूं खाते हो?

पास आए नही हम 

और तुम छोड़ जाते हो?


जाना था दूर तक मगर

दो कदम पर साथ छोड़ जाते हो?

नहीं है जब कोई अहसास

खास क्यूं बताते हो?


  हर वफा का इनाम

   जफा क्यूं दे जाते हो

    बुझानी ही थी लौ अगर

    पास आकर हवा क्यूं दे जाते हो?


कर के सब चालाकियां

नादान क्यूं बन जाते हो?

बांट देते हो खुद को सब में मगर

बस मेरे हिस्से में काम क्यूं आते हो?

बेचैन

 चांद में चांदनी है जैसे

फूलों में रंग है वैसे

कोयल की कूक

बरसात में जैसे।


लगे सुहावन मन को ऐसे

ठंड में सर्दी की धूप जैसे

बेचैन हो तूभी कभी ऐसे

चाहे तुझे कोई मेरे जैसे।

उम्मीद

 मंजिल वहीं है, पर रास्ते बदल गये।

जाने कब उम्मीद के सूरज ढल गये।


बंद कर ली है आंखे मगर

सपनों में आना छूटा नही है ।


गहरी है चोट, गहरा असर है

कैसे कहूं दिल टूटा नही है।



छुड़ा लिया उसने दामन मगर

दिल का धागा टूटा नहीं है।


बदल गये हैं वो आजकल

पर बहुत कुछ छूटा नहीं है।


बदला वक्त, हम दूर तक निकल गये।

जाने कब उम्मीद के सूरज ढल गये।

- *मंजरी*

सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...