उलझ जाओ गर उलझनों में,
तो उलझो नही ,
लड़ जाओ उलझनों से।
माना उलझने उलझाती है ,
पर सच है ,
उलझने हीं नई राह दिखाती है।।
जिंदगी भी सीधी कहाँ चल पाती है?
हो जाए जो सीधी,
तो जिंदगी खत्म हो जाती है।
सोना भी अस्तित्व का मूल्य चुकाता है,
तप कर आंच में हीं निखार पाता है।।
न ढूँढ हसरत भरी निगाह से मददगार कोई,
सुलझती नही उलझन ,
आ जाती है फिर नई।
प्यार जो खुद से ना कर पाएगा,
मुफ्त में तुझे खैरात,
क्यों कोई दे जायेगा?
बिखर कर उलझनों से क्या पाएगा?
समेट ले खुद में खुद को,
एक नया राह मिल जाएगा।।