दर्द में डूब कर मुस्कान देती है जो
रूप उस सा दुनिया में नहीं कोई और
बस स्त्री है वह।।
है अल्हड़ नादान सी वह
है बेखबर दुनिया से अनजान सी वह
उलझ कर उलझनों में जीवन सुलझाती है वह
कोई और नहीं बस स्त्री है वह।।
चुभ जाए तिनका भी जो आसमान उठाती है
लड़कर मौत से जीवन देती है जो
कोई और नहीं स्त्री है वह।।
समझ नहीं छोटी-छोटी बातों की
हर बात पर परेशान हो जाती है वह
समझ कर दुनिया हर बात सुलझती है जो
कोई और नहीं स्त्री है वह।।
ब्रेक नहीं लगता गाड़ी में अक्सर टकरा जाती है वह
पर बिखरे जीवन में ठहराव लाती है वह।।
कोमल है सुकुमार सी यह क्या कर पाएगी?
कहते हैं लोग ऐसा स्त्री है हार जायेगी
पर छोड़ती कोमलता जब
दुर्गा बन जाती है वह
कोई और नहीं स्त्री है वह।।
बिखर कर खुद को जोड़ जाती है जो
कोई और नहीं स्त्री है वह।
मोल नहीं जिसका जीवन में कोई भी
बस प्यार से लूटा दे जो जीवन भी
टूटे बटन से आत्म विश्वास ठीक कर जाती है जो
कोई और नहीं स्त्री है वह।।