Saturday, December 17, 2022

स्त्री है वह

 दर्द में डूब कर मुस्कान देती है जो

रूप  उस सा  दुनिया में नहीं कोई और 

बस स्त्री है वह।।


है अल्हड़  नादान सी वह

है बेखबर दुनिया से अनजान सी वह

उलझ कर उलझनों   में जीवन सुलझाती है वह

कोई और नहीं बस स्त्री है वह।।


चुभ जाए  तिनका भी जो आसमान उठाती है

लड़कर  मौत से जीवन देती है जो

कोई और नहीं स्त्री है वह।।


समझ नहीं छोटी-छोटी बातों की

हर  बात पर परेशान हो जाती है वह

समझ कर  दुनिया हर बात   सुलझती है जो

कोई और नहीं स्त्री है वह।।



ब्रेक नहीं लगता गाड़ी में अक्सर टकरा जाती है वह

पर बिखरे  जीवन में ठहराव लाती है वह।।


कोमल है सुकुमार सी यह  क्या कर पाएगी?

कहते हैं लोग ऐसा स्त्री है हार जायेगी

पर छोड़ती कोमलता  जब

दुर्गा बन जाती है वह

कोई और नहीं स्त्री है वह।।



बिखर कर खुद को जोड़  जाती है जो 

कोई और नहीं स्त्री है वह।

मोल  नहीं जिसका जीवन में कोई भी 

बस प्यार से लूटा दे जो  जीवन भी

टूटे बटन से आत्म विश्वास ठीक कर जाती है जो

कोई और नहीं स्त्री है वह।।

सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...