न हो मुलाकात तो डायरी के पन्ने बुलाते हैं।
मैं लिखती नहीं, बीते लम्हे मुझसे लिखवाते हैं।
सुबह की मुस्कान, कभी शाम की थकान दोनों,
अक्सर अक्षर बनकर कागज पे उतर आते हैं।
देख इसका रूप कलम मचल जाती है।
मेरे शब्द सारी खुशी, सब गम बयां कर जाते हैं।
कभी मिलन की ओस बदन की सिहरन बढ़ाती है
कभी विरह के आंसू मेरे दामन को भिंगाते हैं।।
बचपन गुनगुनाता है कभी अल्हड़पन जवान होता है।
कभी मन का भेद, दुनियां की हकीकत बताते हैं।।
डायरी के पन्ने और कलम में मेरी दुनिया समाती है।
मैं लिखती नहीं, बीते लम्हे मुझसे लिखवाते हैं।।
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