शब्दों के मोती से
मन का खजाना खोलती हूं
तेरी रचना तुझको सौंपती हूं
सांसों के हर धागे से
प्रीत की चादर बुनती हूं
मोल नहीं जिसका कोई
बेमोल अर्पित करती हूं
पलकों के चिलमन में
तेरी यादें बसा के रखती हूं
तू आए या ना आए
रोज तेरा रास्ता निहारती हूं
रोकती हूं मचलते कदमों को
ना हो तू रुसवा कहीं जमाने में
हर रोज मर के जीती हूं
मिल जाए शायद मन से मन कभी
इस आस में हर सांस संभाले रहती हूं
मिल जाए दिल को सुकून जरा
हर वक्त तेरी तस्वीर सीने से लगाए रखती हूं।
मन का खजाना खोलती हूं
तेरी रचना तुझको सौंपती हूं
सांसों के हर धागे से
प्रीत की चादर बुनती हूं
मोल नहीं जिसका कोई
बेमोल अर्पित करती हूं
पलकों के चिलमन में
तेरी यादें बसा के रखती हूं
तू आए या ना आए
रोज तेरा रास्ता निहारती हूं
रोकती हूं मचलते कदमों को
ना हो तू रुसवा कहीं जमाने में
हर रोज मर के जीती हूं
मिल जाए शायद मन से मन कभी
इस आस में हर सांस संभाले रहती हूं
मिल जाए दिल को सुकून जरा
हर वक्त तेरी तस्वीर सीने से लगाए रखती हूं।