Monday, April 27, 2020

अर्पण

शब्दों के मोती से
मन का खजाना खोलती हूं
तेरी रचना तुझको सौंपती हूं
सांसों के हर धागे से
प्रीत की चादर बुनती हूं
मोल नहीं जिसका कोई
बेमोल अर्पित करती हूं
पलकों के चिलमन में
तेरी यादें बसा के रखती हूं
तू आए या ना आए
रोज तेरा रास्ता निहारती हूं
रोकती  हूं मचलते कदमों को
ना हो तू रुसवा कहीं जमाने में
हर रोज मर के जीती हूं
मिल जाए शायद मन से मन कभी
इस आस में हर सांस संभाले रहती हूं
मिल जाए दिल को सुकून जरा
हर वक्त तेरी तस्वीर सीने से लगाए रखती हूं।


Friday, April 10, 2020

अधूरा साथ

है साथ चलते मगर  हम सफर नहीं
बाहों में जिस्म  मेरा पर ख्वाबों में हम नहीं
है साथ साथ पर फासले भी कम नहीं
लबों पे मेरे उस के  ही तराने
पर उसके लबों पर मेरी जुंबिश तक नहीं
वह मेरे हर पल में आज में  कल में
हम आज  में भी नहीं
रूह  तक समा गया है जो
हम उसकी बातों में भी नहीं
रातें गुजरती याद में जिसकी
सोता वो  चैन से बाहों में कहीं
कहता था मुझसे ना तुझसे  पहले ना तेरे बाद कोई
गुम हो गया है आज वो पुरानी गलियों में कहीं
हर सितम के बाद कहता है मासूमियत से
तेरे गुनहगार हम नहीं।

Thursday, April 2, 2020

तुम

हर ख्वाब में तुम हो
हर सांस में तुम हो
हर मुस्कान में तुम हो
आंसू की हर बूंद में तुम हो
मेरी हर सुबह हर शाम में तुम हो
मेरे कल में तुम हो
मेरे आज में तुम हो
हो हर जगह तुम ही तुम
बस हाथों की लकीरों में तुम नहीं हो।

सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...