छूट जाती है काया प्राण चला जाता है
जल जाती है देह राख भी साथ नहीं जाता है
खामोश हो जाती है सुरीली तान
सदा सदा के लिए चुप हो जाते हैं अल्फाज
छूट जाते हैं सब धंधे-कारोबार
मिलती नहीं एक साँस भी उधार
कोई कुछ समझ भी न पाता है
जीवन की जंग में माहिर खिलाड़ी भी हार जाता है
चुप हो जाते है घुंघरू थम जाती है हर ताल
रुक जाती है जब धड़कनों की धड़कन व चाल
रह जाते हैं सब महल, मेहराब दरबार
उड़ जाता है प्राणों का पंछी तोड़ देह का पिंजरा हर बार
उसके आगे न चला है न चल पाएगा
तो फिर किस बात का मोह?
किस बात का अभिमान?
खाली हाथ आए हैं
जाएँगे खुले हाथ
सुधार कर जीवन बनें नेक इंसान
खत्म हो जाता है सब मगर
यश - कीर्ति सदा रहती साथ।