Sunday, February 20, 2022

सफर

 छूट जाती है काया प्राण चला जाता है

जल जाती है देह राख भी साथ नहीं जाता है

खामोश हो जाती है सुरीली तान

सदा सदा के लिए चुप हो जाते हैं अल्फाज

छूट जाते हैं सब धंधे-कारोबार

मिलती नहीं एक साँस भी उधार

कोई कुछ समझ भी न पाता है

जीवन की जंग में माहिर खिलाड़ी भी हार जाता है

चुप हो जाते है घुंघरू थम जाती है हर ताल

रुक जाती है जब धड़कनों की धड़कन व चाल

रह जाते हैं सब महल, मेहराब दरबार

उड़ जाता है प्राणों का पंछी तोड़ देह का पिंजरा हर बार

उसके  आगे न चला है न चल पाएगा

तो फिर किस बात का मोह?

किस बात का अभिमान?

खाली हाथ आए हैं

जाएँगे खुले हाथ

सुधार कर जीवन बनें नेक इंसान

खत्म हो जाता है सब मगर

यश - कीर्ति सदा रहती साथ।

सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...