माना नामुमकिन है वक्त को रोक पाना
बहते समय की धार को कहीं मोड़ पाना।
करें उदास जब जिंदगी की राहें
कुछ देर ठहरना, बचपन में खो जाना, वो रूठना,वो मानना
वो झगड़कर भी साथ खाना।
वो सखियों की मनुहार, वो टीचर की डांट। भूलकर सब अगले ही पल
फिर से नई शरारत कर जाना।
वो दशहरे का त्योहार
और खुशियां हजार
होली के रंगों से रंगना
नए कपड़े पहन शाम को निकलना
चंद रुपयों में जहां की
खुशियां समेटना।
ना भविष्य की चिंता
ना भूत का पछतावा
खुश रहना बस आज में
एक-एक सीढ़िया चढ़ते जाना।
वो मां का दुलार
पापा की फटकार
वो पुरानी गलियां, वो पुराना मकान
हैं बस यादें मगर, यादों में ही ठहर जाना।
चलेगा वक्त मगर,
वो बचपन फिर ना आयेगा,
वो खुशियां न दे पाएगा,
फिर भी चलते जाना,
फिर भी चलते जाना ़़़़़़़।
- *मंजरी*
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