Wednesday, May 26, 2021

जीवन आधार

 सहकर हर वार दे जीवन का वरदान

वह ढाल है पिता

भरकर हर रंग जो दे संवार

वह चित्रकार है पिता

अनगढ़ मिट्टी को जो दे आकर

वह कुम्हार है पिता

तपती धूप में भी शीतल कर दे

वह  छांव है पिता

तपा कर मेहनत की आग में 

जो दे सोने सा निखार

वह सुनार है पिता

सिखाए जो जीवन का पाठ

वह गुरु  है पिता

सह दुखो की धूप

खिलाए जो बचपन का फूल

वह माली है पिता

देकर जीवन रहता जो मूक

न समझना उसको है भारी भूल

सांसों का आधार है पिता

शब्दो से परे ब्रम्हांड है पिता

Sunday, May 23, 2021

बिलखती गंगा

 उतर धारा पर देती जीवन का वरदान

पुण्यसलिला भागीरथी नाम महान

धोकर तन मन का मैल करती निर्मल

देवो से पूजित है गंगाजल

देती सबको जीवन का आधार

मां कहकर इंसान करता उसकी शुचिता पर प्रहार

तन धोया मन का मैल धो ना पाया 

पाकर कर्मो का फल फिर भी समझ न पाया

जीवनदायिनी है जो जीवन का आधार

दूषित किया उसे लगा गंदगी का अंबार

किया प्रकृति से खिलवाड़

हिल गई दुनिया आया करोना काल

काटकर छीना जिनसे जीवन

मांगते अब उन्हीं से सांसे उधार

खोकर भी जीवन ना सुधरा उसका मन

महामारी में जो कुछ कर न पाया

बहाकर लाशे गंगा में संकट और बढ़ाया

बिलखती है गंगा देख विनाश की लीला

बच्चो ने ही मां की पवित्रता को छीना

खत्म हो गए जो जल,वायु, तो कैसे जी पाएगा?

मानवता की हत्या का पाप कौन उठाएगा?

भावी पीढ़ी को क्या यही सौगात दे जायेगा?

जीना है फिर से तो इंसानियत सीखो

पेड़, पौधे, हवा, धरा,सब को सिंचो

जो प्रकृति की गोद में जायेगा

आरोग्यता का वरदान वही पाएगा।

Thursday, May 20, 2021

वो मुलाकात

 बिजली चमके, मन तरसे

बादल  कड़के ,  दिल धड़के

अनकही चाहत से दिल मचले

बाहर बादल बरसे 

अंदर दो नैना तरसे

जाने कब हो ऐसी बरसात

भींगने का मिले सौगात

भींगे तन मन हर्षे

हौले हौले जब बरसे

बीते साल दर साल

नहीं भींगी, है ये मलाल

होगी उनसे  मुलाकात

जाने कब होगी वो बरसात?

Saturday, May 1, 2021

कश्मकश

टूटकर चाहा उसे इस कदर की खुद बिखर गई
याद रखा इतना उसे की खुद को भूल गई
आना चाहा पास जितना 
उतना ही दूर हो गई
चाह में जिसकी सब भूल गया
याद रखा उसने सब मगर मुझे ही भूल गया
नजरो से वो है ओझल
याद फिर करता उसे दिल क्यों पल पल
छुड़ा लिया दामन जिससे
मन बचा क्यों ना पाई उससे
फेर लूं जो नजर
नजर आता फिर भी मगर
दिल दिमाग में जंग जारी है किसी ने ना हारने की ठानी है
कश्मकश में है दिल अंजाम बाकी है।

सोचा न था

 निगाहों से दिल में उतरकर यूं चला जाता है कोई सोचा न था। साथ चलते चलते  अचानक यूं छोड़ जाता है कोई  सोचा न था। बनकर करार बेकरारी दे जाता है ...