सहकर हर वार दे जीवन का वरदान
वह ढाल है पिता
भरकर हर रंग जो दे संवार
वह चित्रकार है पिता
अनगढ़ मिट्टी को जो दे आकर
वह कुम्हार है पिता
तपती धूप में भी शीतल कर दे
वह छांव है पिता
तपा कर मेहनत की आग में
जो दे सोने सा निखार
वह सुनार है पिता
सिखाए जो जीवन का पाठ
वह गुरु है पिता
सह दुखो की धूप
खिलाए जो बचपन का फूल
वह माली है पिता
देकर जीवन रहता जो मूक
न समझना उसको है भारी भूल
सांसों का आधार है पिता
शब्दो से परे ब्रम्हांड है पिता