Monday, March 4, 2024

उम्मीद

 मंजिल वहीं है, पर रास्ते बदल गये।

जाने कब उम्मीद के सूरज ढल गये।


बंद कर ली है आंखे मगर

सपनों में आना छूटा नही है ।


गहरी है चोट, गहरा असर है

कैसे कहूं दिल टूटा नही है।



छुड़ा लिया उसने दामन मगर

दिल का धागा टूटा नहीं है।


बदल गये हैं वो आजकल

पर बहुत कुछ छूटा नहीं है।


बदला वक्त, हम दूर तक निकल गये।

जाने कब उम्मीद के सूरज ढल गये।

- *मंजरी*

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